परिवार का ये सदस्य बिना पूछे बेच सकता है प्रॉपर्टी – सुप्रीम कोर्ट का फैसला Joint Family Property Rights

By Prerna Gupta

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Joint Family Property Rights – संपत्ति के मामले हमेशा से ही लोगों के लिए बहुत संवेदनशील रहे हैं। खासकर जब बात हो परिवार की संयुक्त प्रॉपर्टी की, तो उसमें कई लोगों का हक होता है और अक्सर विवाद भी इसी वजह से पैदा हो जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि परिवार में एक ऐसा सदस्य होता है, जिसके पास बिना किसी और से पूछे परिवार की संपत्ति बेचने या उसे गिरवी रखने का पूरा अधिकार होता है? जी हाँ, ऐसा है और इसे समझना बेहद जरूरी है, ताकि आप भी अपने हक और अधिकारों को अच्छे से जान सकें।

परिवार में कौन है वह सदस्य जो बिना पूछे ले सकता है फैसले?

भारत में जब बात संयुक्त परिवार की होती है, तो उस परिवार का सबसे बड़ा या वरिष्ठ पुरुष सदस्य ‘कर्त्ता’ कहलाता है। कर्त्ता के पास परिवार की संपत्ति को लेकर सारे फैसले लेने का अधिकार होता है। चाहे वह जमीन हो, मकान हो या कोई अन्य प्रकार की प्रॉपर्टी, कर्त्ता बिना किसी से पूछे उसे बेचने या गिरवी रखने का फैसला कर सकता है। इसके लिए उसे परिवार के बाकी सदस्यों की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती।

यह अधिकार कर्त्ता को जन्मजात मिल जाता है और यह आमतौर पर उम्र में सबसे बड़ा सदस्य होता है। कर्त्ता का काम परिवार की संपत्ति का प्रबंधन करना होता है और वह इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार होता है।

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कर्त्ता का अधिकार और उसकी सीमाएं

कर्त्ता का अधिकार जन्म सिद्ध होता है, लेकिन यह हमेशा उम्र के हिसाब से नहीं होता। अगर कर्त्ता की मौत हो जाती है, तो परिवार का अगला सबसे बड़ा सदस्य कर्त्ता बन जाता है। हालांकि, परिवार के सदस्यों के बीच सहमति से या कोर्ट के आदेश से भी कर्त्ता चुना जा सकता है। कभी-कभी मौजूदा कर्त्ता अपनी वसीयत के जरिए किसी और को कर्त्ता नियुक्त भी कर सकता है।

कर्त्ता के पास संपत्ति के संबंध में सभी अधिकार होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह अनावश्यक रूप से किसी भी फैसले को पारदर्शिता या सम्मान के बिना ले सकता है। अगर कर्त्ता ऐसा करता है जिससे परिवार को नुकसान पहुंचता है या गैरकानूनी गतिविधि होती है, तो परिवार के सदस्य कोर्ट में जाकर उसका विरोध कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और मद्रास हाईकोर्ट का उदाहरण

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है, जिसमें उसने मद्रास हाईकोर्ट के 2023 के फैसले को सही माना है। यह मामला करीब 9 साल पुराना था, जिसमें याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उनके पिता, जो परिवार के कर्त्ता थे, उन्होंने बिना परिवार के अन्य सदस्यों से पूछे एक संयुक्त संपत्ति को गिरवी रख दिया था।

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मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि परिवार का कर्त्ता बिना किसी से पूछे संपत्ति को बेचने या गिरवी रखने का अधिकार रखता है, और इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी। यह फैसला परिवार के कर्त्ता के अधिकारों को मजबूत करता है और बताता है कि परिवार की संपत्ति के मामलों में उसका फैसला अंतिम होता है।

क्या करें अगर कर्त्ता ने गलत फैसला लिया?

हालांकि कर्त्ता के पास ये अधिकार होते हैं, लेकिन अगर वह किसी भी तरह गैरकानूनी काम करता है या परिवार के हितों के खिलाफ फैसला लेता है, तो उत्तराधिकारी या परिवार के अन्य सदस्य उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।

उत्तराधिकारियों की श्रेणियां कानून में निर्धारित हैं। इनमें पहली श्रेणी और दूसरी श्रेणी के उत्तराधिकारी शामिल होते हैं, जो अपनी संपत्ति के हिस्से के लिए दावा कर सकते हैं। अगर कर्त्ता ने कोई ऐसा फैसला लिया जो कानूनी रूप से गलत हो, तो परिवार के सदस्य कोर्ट में जाकर इसका विरोध कर सकते हैं और नुकसान की भरपाई मांग सकते हैं।

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संयुक्त परिवार और संपत्ति के विवाद: एक सामान्य स्थिति

संयुक्त परिवार में संपत्ति के मामलों में विवाद होना सामान्य बात है। कई बार छोटे सदस्यों को लगता है कि कर्त्ता अपनी मर्जी से फैसले लेता है और परिवार के बाकी लोगों का हक नजरअंदाज होता है। लेकिन यह जानना जरूरी है कि कर्त्ता का अधिकार कानून के तहत दिया गया है ताकि परिवार की संपत्ति का सही और सुचारू प्रबंधन हो सके।

अगर परिवार में आपसी सहमति और समझदारी बनी रहे, तो अधिकांश मामले आसानी से सुलझ जाते हैं। लेकिन जब विवाद बढ़ता है, तो कोर्ट में केस भी चलते हैं। सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले ने यह साफ कर दिया है कि कर्त्ता के अधिकारों को कानून के तहत सुरक्षा मिली है, बशर्ते वह अपने कर्तव्य का सही पालन करे।

परिवार के सदस्यों के लिए सुझाव

  1. अपनी जानकारी बढ़ाएं: परिवार की संपत्ति और कर्त्ता के अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी रखें ताकि गलतफहमियां न हों।
  2. संपत्ति के फैसलों में शामिल हों: भले ही कर्त्ता के पास अधिकार हो, लेकिन बेहतर होगा कि परिवार के सदस्य मिलकर चर्चा करें और पारदर्शिता बनाए रखें।
  3. कानूनी सलाह लें: अगर आपको लगता है कि कर्त्ता का फैसला गलत है, तो जल्द से जल्द एक वकील से सलाह लें और कानूनी रास्ता अपनाएं।
  4. संपत्ति के कागजात संभालकर रखें: सभी दस्तावेज सुरक्षित रखें ताकि जरूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके।

संपत्ति से जुड़े फैसले परिवार के लिए कभी-कभी तनाव का कारण बन सकते हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि परिवार का कर्त्ता कानून के हिसाब से संपत्ति के मामलों में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार रखता है। साथ ही, यह भी जरूरी है कि कर्त्ता अपने फैसलों में पारदर्शिता और जिम्मेदारी का परिचय दे, ताकि परिवार में विवाद न बढ़ें।

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अगर आप भी अपने परिवार की संपत्ति से जुड़े मामलों को लेकर कंफ्यूज हैं, तो इस जानकारी को ध्यान से पढ़ें और जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञ से सलाह लें। क्योंकि सही जानकारी ही आपको अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझने में मदद करती है।

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